
भगवत गीता का पारायण युवावस्था से ही प्रारंभ होना चाहिए। गीता में जीवन जीने की कला भगवान श्रीकृष्ण ने बताई है, और यह हर व्यक्ति को अपने युवा काल में ही ज्ञात होनी चाहिए। भगवत गीता में आज के व्यक्तिगत और सामाजिक हर समस्या का समाधान है।
भगवत गीता का पारायण युवावस्था से ही प्रारंभ होना चाहिए। गीता में जीवन जीने की कला भगवान श्रीकृष्ण ने बताई है, और यह हर व्यक्ति को अपने युवा काल में ही ज्ञात होनी चाहिए। भगवत गीता में आज के व्यक्तिगत और सामाजिक हर समस्या का समाधान है।
बचपन से जिन संस्कारों को मानव अपनी आदतों में ढाल लेता है वही संस्कार उसका स्वभाव बन जाते हैं। अच्छी आदतों को किशोरावस्था में ही अंगीकार कर लिया जाता है तो पूरा जीवन सफल और प्रभावी हो जाता है। जीवन में प्रोएक्टिव होना अर्थात पहल करना। जब हम अंतिम लक्ष्य को दृष्टिगत रखते हुए कार्य करना सीखने लगते हैं तो कार्य की समझ, दूसरों के दृष्टिकोण का अनुभव तथा समूह में मिलकर कार्य करने जैसे गुण स्वमेव ही विकसित होने लगते है।
जीवन में सफलता अर्जित करने के लिए प्रत्येक पल महत्वपूर्ण है। समय के पूर्ण नियोजन से ही सबकुछ प्राप्त हो सकता है। विवेकानन्द केन्द्र के संस्थापक एकनाथ रानडे के जीवन को देखते हुए जब हम नियोजन की बात करते हैं तो यह नियोजन इस रूप में हो कि जैसे हम कभी मरने वाले ही नहीं है किंतु जब इस पर क्रियान्वयन की बात आए तब ऐसा भाव हो कि हमारे पास केवल एक ही दिन है और वह है आज।
स्मारक के संस्थापक एकनाथजी रानडे का जीवन हमें इस बात के लिए प्रेरित करता है कि जीवन में कठिनाइयों के सामने कभी झुकना नहीं है और एक से एक जुड़ते हुए संगठन बनाते हुए आगे बढ़ते जाना है यही विचार आज पूरे देश में विवेकानंद केन्द्र विवेकानन्द शिला स्मारक के 50 में वर्ष में प्रवेश करने के अवसर पर प्रचारित प्रसारित कर रहा है उक्त विचार विवेकानंद केंद्र के प्रकाशन समिति के सदस्य तथा राजस्थान साहित्य अकादमी के सदस्य श्री उमेश कुमार चौरसिया ने शिला स्मारक के संपर्क अभियान के अवसर पर सीनियर सिटीजन ग्रुप 3 की बैठक में व्यक्त किए।
अध्यात्मा प्रेरित सेवा संगठन विवेकानंद केंद्र द्वारा अजमेर के जियालाल टीटी कॉलेज में उठो जागो युवा प्रतियोगिता के आयोजन के दूसरे चरण में एक दिवसीय युवा सम्मेलन का आयोजन किया गया। नगर प्रमुख अखिल शर्मा ने बताया कि इस युवा सम्मेलन में 80 युवक-युवतियों ने सहभागिता की।
Vivekananda Kendra Gratefully Remembers and Invites the Hundreds and T
महान आत्माओं का परिचय उनके कार्य से ही पता चलता है। जगत के हित के लिए किया गया कार्य ही आत्मा का मोक्ष होता है। बल संख्या या अर्थ से नहीं आता है बल्कि बल आत्मा से ही आता है। शक्ति का एकमात्र स्रोत आत्मा है। जीवन का पाठ कंठस्थ करने से नहीं बल्कि जीवन में उसे उतारने से याद होता है। स्वामी विवेकानन्द ने ईसाई व इस्लाम का गहन अध्ययन किया। रिलीजन का अनुसाद धर्म नहीं है।
जोधपुर, 12 सितम्बर : विवेकानन्द केन्द्र हिन्दी प्रकाशन विभाग की ओर से साहित्य से निर्मित “साहित्य राजा श्रीगणेश” की प्रतिमा का अनंत चतुर्दशी को विसर्जन किया गया। उल्लेखनीय है कि इस साहित्य राजा की प्रतिमा को बनाने के लिए “कर्मयोग” नामक पुस्तिका के 50 प्रतियों तथा एक केन्द्र भारती मासिक पत्रिका का उपयोग किया गया था।