भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि में अर्जुन के सम्मुख जो ज्ञान की गंगा बहाई, वह वाणी श्रीमद्भगवद् गीता के रूप में सर्वत्र उपलब्ध है। यह गीता माँ ही है जो हमारा पोषण करती है, हमें ध्येयमार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है, उस योग्य बनाती है। इसलिए आचार्य विनोबा भावे ने गीता को "माऊली" अर्थात् माता कहा है। उक्त विचार व्यक्त करते हुए विख्यात सिविल इंजीनियर, संस्कृत तथा गीता मर्म के ज्ञाता श्री श्रीनिवास वर्णेकर ने गीता के उपदेशों को अपने जीवन में अंगीकार करने का आग्रह किया। श्री वर्णेकर रवींद्र नगर स्थित हनुमान मंदिर सभागृह में विवेकानन्द केन्द्र की ओर से आयोजित गीता जयंती समारोह को संबोधित कर रहे थे।
श्री वर्णेकर ने आगे कहा कि गीता में परिवार शब्द नहीं है किन्तु गीता में परिवार संदेश समाया है। गीता स्वार्थ से परमार्थ, व्यष्टि से समष्टि, मैं से हम अर्थात् विश्व या यह सम्पूर्ण सृष्टि ही अपना परिवार है, इसका बोध कराती है। गीता माँ की उंगली पकड़कर हम चलते हैं तो हमारा जीवन सही दिशा में रहेगा।
उन्होंने आगे कहा कि संसार में गीता एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जिसकी जयंती मनाई जाती है। ऐसा महान और अद्वितीय ग्रंथ होने के बावजूद भी आज भी अपने ही देश में गीता अध्ययन के प्रति उदासीनता दिखाई देती है। इसलिए आज आवश्यकता है कि गीता ज्ञान के प्रसार के लिए समाज को जगाना होगा।
श्री वर्णेकर ने अपने संबोधन के दौरान गीता के अलग-अलग अध्यायों के दौरान अर्जुन के प्रश्न, उनकी मनोदशा और उसपर भगवान श्रीकृष्ण का मार्मिक उत्तर का उल्लेख किया है। साथ ही गीता के श्लोकों का उदाहरण देते हुए उन्होंने धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों के मर्म को समझाया। आइए, हम गीता पढ़े, पढ़ाएं और उसे अपने जीवन में अपनाएं।
उल्लेखनीय है कि विवेकानन्द केन्द्र की ओर से देशभर में गीता जयंती मनाई जाती है। इस समारोह में भारी संख्या में गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।