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1 मई से 15 मई, 2024 तक, कन्याकुमारी के विवेकानंदपुरम में योग शिक्षा शिविर का आयोजन किया गया। भारत के विभिन्न राज्यों से 18 प्रतिभागियों ने इस योग शिविर में भाग लिया।

शिविर की मुख्य विशेषताएं

विविध प्रतिभागिता: शिविर में तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, गुजरात, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र के प्रतिभागियों का स्वागत किया गया, जिससे सांस्कृतिक आदान-प्रदान का एक जीवंत वातावरण तैयार हुआ।
व्यवस्थित शिक्षा: प्रतिभागियों को चार वेदों - ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद के नाम पर चार समूहों में विभाजित किया गया था। सभी की जरूरतों को पूरा करने के लिए शिविर हिंदी और अंग्रेजी दोनों में आयोजित किया गया था।
अभ्यास: दैनिक कार्यक्रम में सुबह की प्रार्थना, योग आसन, प्राणायाम, श्रमसंस्कार, व्याख्यान, समूह चर्चा, जप, भजन संध्या, और प्रेरणा से पुनरुत्थान (प्रेरणादायक सत्र) शामिल थे। प्रतिभागियों ने व्यायाम, सूर्यनमस्कार, विभिन्न आसन और विभिन्न प्राणायाम तकनीकें सीखीं।
सैद्धांतिक समझ: व्याख्यानों में योग की अवधारणा, यम, नियम, आसन, प्राणायाम, अंतरंग योग, क्रिया, बंध, मुद्रा, भगवद गीता, कर्म योग, भक्ति योग, ज्ञान योग, आनंद मीमांसा, और भारतीय संस्कृति को शामिल किया गया।
प्रेरणादायक सत्र: स्वामी विवेकानंद, मां एकनाथजी, विवेकानंद रॉक मेमोरियल, विवेकानंद केंद्र, और भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता के अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं पर सत्रों ने सीखने के अनुभव को समृद्ध किया।
जप और ध्यान: प्रतिभागियों ने विभिन्न मंत्रों का अभ्यास किया और त्राटक (एक योगिक शुद्धि तकनीक), ओंकार ध्यान (ॐ की ध्वनि पर ध्यान), और चक्रीय ध्यान का अनुभव किया।
सात्विक जीवन शैली: योग अभ्यास के साथ एक शुद्ध और सात्विक आहार पूरक था, और श्रमसंस्कार सत्रों ने निस्वार्थ सेवा के मूल्य को स्थापित किया।
आध्यात्मिक संवर्धन: शाम की भजन संध्या और प्रेरणा से पुनरुत्थान सत्र, खेल, आत्मनिरीक्षण और विवेकानंद केंद्र की गतिविधियों पर अपडेट के साथ, प्रतिभागियों के आध्यात्मिक विकास में इजाफा हुआ।

प्रतिभागियों ने प्रतिष्ठित विवेकानंद रॉक मेमोरियल, रामायण दर्शन प्रदर्शनी, अराइज-अवेक प्रदर्शनी, गंगोत्री का दौरा किया और कन्याकुमारी देवी मंदिर में दीप पूजा में भाग लिया।

प्रभाव: योग शिक्षा शिविर एक सौहार्दपूर्ण और आध्यात्मिक वातावरण में संपन्न हुआ। कई प्रतिभागियों ने केंद्र की गतिविधियों के माध्यम से समाज में योगदान देने की इच्छा व्यक्त की। समापन सत्र में यौगिक जीवन शैली, सत्यता, मन की पवित्रता, निःस्वार्थता, ईश्वर में विश्वास और प्रार्थना के महत्व पर बल दिया गया।

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