11 सितम्बर:: स्वामी विवेकानन्द जी के शिकागो भाषण की 125 वीं वर्षगांठ के अवसर पर विवेकानन्द केंद्र कन्याकुमारी की लखनऊ शाखा द्वारा आज “विश्व बंधुत्व दिवस” का आयोजन, लखनऊ विश्व विद्यालय के मालवीय सभागार में सायं 4.30 बजे से किया गया जिसमे बतौर मुख्य अतिथि माननीय श्री राम नाईक , माननीय राज्यपाल उत्तर प्रदेश, मुख्य वक्ता माननीय न्यायमूर्ति श्री शबीहुल हसनैन, लखनऊ उच्च न्यायालय तथा विशिष्ठ अतिथि श्रीमती संयुक्ता भाटिया, माननीय महापौर, लखनऊ उपस्थित थीं I माननीय श्री राम नाईक , माननीय राज्यपाल उत्तर प्रदेश ने दीप प्रज्वल्लित कर उक्त कार्यक्रम का उद्घाटन किया ! केंद्र द्वारा स्वामी विवेकानन्द जी के ऐतिहासिक शिकागो भाषण पर आधारित भाषण प्रतियोगिता में चयनित 18 प्रातिभागियो को माननीय अतिथियों द्वारा उक्त कार्यक्रम में सम्मानित भी किया गया I
मुख्य अतिथि, मुख्य वक्ता तथा विशिष्ठ अतिथि के अतिरिक्त जो अन्य गणमान्य अतिथि उपस्थित थे उनमे प्रो एस. पी. सिंह माननीय कुलपति, लखनऊ विश्वविद्यालय, डॉ. दयानन्द लाल संचालक, विवेकानन्द केन्द्र, मेजर जनरल अजय चतुर्वेदी, विमर्श प्रमुख, विवेकानन्द केन्द्र लखनऊ तथा प्रमुख थे I पुरस्कार वितरण का कार्यक्रम सभी गणमान्य विशिष्ठ जनों के कर कमलों द्वारा सम्पादित किया गया ।
विवेकानन्द केन्द्र लखनऊ के संगठक श्री अश्वनी ने बताया कि विवेकानंद केन्द्र कन्याकुमारी एक अध्यात्म प्रेरित सेवा संगठन है, जिसका उदेश्य स्वामी विवेकानंद के विचार “व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण” के आधार पर कार्य करना है । केंद्र सम्पूर्ण देश मे 856 शाखाओ,70 शिक्षण संस्थानो, 14प्रकल्पों के माध्यमों से अपनी गतिविधियों का संचालन करता है ।
श्री अश्वनी ने आज के कार्यक्रम की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए कहा कि स्वामी विवेकानन्द जी के शिकागो भाषण की 125 वीं वर्षगांठ के अवसर पर उनके भाषण पर आधारित भाषण प्रतियोगिता लगभग 60 विद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में लगभग 5000 प्रतिभागियों के बीच विगत दो सप्ताह में आयोजित कराया गया जिसमे से चयनित 18प्रातिभागियो को आज पुरस्कार एवं प्रमाणपत्र प्रदान कर सम्मानित किया जा रहा है I उन्होंने कहा कि निश्चितरूप से स्वामी विवेकानन्द के तेजश्वी विचारों से विद्यार्थी अवगत हुए होंगे और उन्हें उनसे राष्ट्र निर्माण हेतु प्रेरणा भी मिली होगी । श्री अश्वनी ने बताया कि विवेकानन्द केंद्र पूरे भारत में प्रत्येक वर्ष इस दिवस को “विश्वबंधुत्व” के रूप में मनाता है और इसी प्रकार युवाओं के बीच भाषण प्रतियोगिता आयोजित करता है I
मुख्य वक्ता माननीय न्यायमूर्ति श्री शबीहुल हसनैन, लखनऊ उच्च न्यायालय ने अपने संबोधन में विस्तार से विवेका नन्द जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला I उन्होंने कहा कि स्वामी जी एक निर्विवाद मार्गदर्शक थे उनका 1893 का शिकागो की धर्म संसद में दिया गया भाषण भारत की संस्कृति और सभ्यता के प्रत्येक पहलुओं का सन्देश देता है I
विशिष्ठ अतिथि श्रीमती संयुक्ता भाटिया, माननीय महापौर, लखनऊ ने कहा कि विवेकानन्द केंद्र द्वारा इस तरह के राष्ट्र निर्माण के कार्यक्रमों की जितनी सराहना की जाए कम है I उन्होंने कहा कि निःसंदेह ऐसे ही कार्यक्रमों से युवाओं में राष्ट्रनिर्माण की प्रेरणा को बल मिलेगा ! उन्होंने सभी विजेताओं की प्रशंसा करते हुए उन्हें बधाईयाँ दीं I
मुख्य अतिथि माननीय श्री राम नाईक , माननीय राज्यपाल उत्तर प्रदेश ने कहा कि 12 जनवरी, 1863 को कोलकाता में जन्में नरेंद्र नाथ आगे चलकर स्वामी विवेकानंद के नाम से मशहूर हुए. विवेकानंद की जब भी बात होती है तो अमरीका के शिकागो की धर्म संसद में साल 1893 में दिए गए भाषण की चर्चा ज़रूर होती है ये वो भाषण है जिसने पूरी दुनिया के सामने भारत को एक मजबूत छवि के साथ पेश किया I उन्होंने बताया कि स्वामी विवेकानंद ने उस भाषण में दुनिया की सबसे पुरानी संत परंपरा और सभी धर्मों की जननी “भारत” के तरफ़ से धन्यवाद दिया और सभी जातियों और संप्रदायों के लाखों-करोड़ों हिंदुओं की तरफ़ से लोगों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि दुनिया में सहिष्णुता का विचार पूरब के देशों से फैला है जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया I उन्होंने यह भी कहा कि हम सिर्फ़ सार्वभौमिक सहिष्णुता पर ही विश्वास नहीं करते बल्कि, हम सभी धर्मों को सच के रूप में स्वीकार करते हैं और उन्हें अपने यहां शरण भी दिया है
केंद्र के सचालक श्री दयानंद लाल ने सभी प्रतिभागियों को बधाई दी और उन्हें स्वामी विवेकानन्द जी के जीवन को निरंतर पढने और उससे प्रेरणा लेने की सलाह दी तथा अंत में उन्होंने कार्यक्रम में उपस्थित सभी का ह्रदय से धन्यवाद ज्ञापित किया I
आज के इस कार्यक्रम में प्रतिभागियों के अतिरिक्त उनके अभिभावक, अध्यापक तथा केन्द्र के सभी कार्यकर्त्ताओं के साथ कुल लगभग 700 लोग उपस्थित थे I