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14 जून शाम भजन संध्या से शिबिर का प्रारंभ हुआ. कुल १४५ कार्यकर्ता उपस्थित रहे. अरुणाचल प्रदेश, असम, बंगाल, ओडिशा, तेलुगु, दक्षिण, महाराष्ट्र, मध्य, दिल्ली, राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश, हिमाचल विभाग से कार्यकर्ता उपस्थित थे।

भगिनी निवेदिता के जीवन से जुड़े लोगों के नाम गणो को दिए. शिबिर की रचना में प्रातःस्मरण के पश्चात कर्मयोगश्लोक संग्रह का उच्चारण और अर्थ तथा सामूहिक गीतापाठ हुआ। गणोमे सामुहिक कार्य का अनुभव सभी ने लिया. बौद्धिक सत्रोमे भारतीय संस्कृति, स्वामी विवेकानन्द का व्यावहारिक वेदान्त, एकनाथजी एक महान योजक, विवेकानंद केन्द्र, केन्द्र प्रार्थना, राष्ट्र अपनी जागृत देवता, सेकयुलारिजम अर्थ अनर्थ, परिवार राष्ट्र निर्माण की इकाइ, सामाजिक समरसता, कार्यकर्ता गढने का तंत्र, विस्तार एवं द्रढिकरण, गुण दर्शनम, इतिहास कथाएँ कहता है,  हमारा करणीय, विराट सागर समाज अपना, संगठित साधना, वैचारिक आन्दोलन, संगठना का रूप देखने एकत्रित नित हुआ करे, आत्मसमर्पण से प्रचण्ड मनोबल इ. विषय लिए गए।

श्री रंगाहरिजी, श्री अरुणजी करमरकर, श्री बसवराज देशमुख, श्री भानुदासजी, श्री हनुमंतरावजी, श्री निवेदितादीदी मार्गदर्शन के लिए उपस्थित रहे।

बौद्धिक सत्रों पर गहराई से चिंतन होने हेतु विषय बिन्दु सत्र था. कार्यकर्ता आपस में गणश: चर्चा के माध्यमसे मंथन सत्र हुआ जिसमें मौलिक सेवा, अखण्डमण्डलाकारम, धर्मं चक्र, भारत को जानो, इतिहास कि गलत अवधारणाए, कार्यकर्ता गुण विकास, संपर्क, दायित्वबोध, प्रकल्प इ. विषयोंकी चर्चा हुई।

दैनिक गीत और मन्त्रोंका अभ्यास हुआ. साथ में नैपुण्य वर्ग हुआ जिसमे नित्य कार्य के लिए आवश्यक बाते जैसे स्वाध्याय वर्ग, गीत, कहानी, दैनंदीनी लेखन, प्रवास, कार्य पत्रक, चारित्र्य कथन, संस्कार वर्ग, योग वर्ग, केंद्र वर्ग, कार्यालय-देवालय, इ. विषय लिए गए। 

मैदानी खेल और सामूहिक अनुशासन शाम के केंद्र वर्ग की विशेषता रही।

नित्य भजन और प्रेरणा से पुनरुत्थान यह रात्रि गतिविधि रही. भगिनी निवेदिता के जीवन की प्रेरणादायी घटनाये रोज बताई गयी।

विवेकानंद केंद्र के वरिष्ठ राष्ट्रिय अधिकारी मा. पी. परमेष्वरनजी, मा. बालकृष्णनजी, मा. लक्ष्मीदीदी और मा. अंगीरसजी का शताभिषेकम कार्यक्रम हुआ।  

श्री एकाक्षर महागणपति मंदिर का महाकुम्भाभिशेकम वेद पठन, हवन, गणेश परिक्रमा यह विशेष अनुभव सभी को मिला. शिलास्मारक, माँ कन्याकुमारी मन्दिर का और रामायण दर्शनम के दर्शन का आयोजन किया गया।

कार्य का दृढीकरण यह मूल मन्त्र लेकर कार्यकर्ता कार्यक्षेत्र में कार्य हेतु सिद्ध हुए।  और २९ जून को सभी संकल्प के साथ कार्यक्षेत्र में प्रस्थान हुए।

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