जीवन रोते हुए नहीं बल्कि समर्थता से जीना है। हमें प्रोफेशन का चयन तभी करना है जब उसे सार्थक करने की सामर्थ्य हमारे अंदर हो। स्वामी विवेकानन्द अनेक कष्टों को सहकर भारत के उत्थान का चिंतन अमेरिका में रहकर करते रहे। संपूर्ण भारत का उन्होंने भ्रमण किया। स्वामीजी ने भारत के बारे में कहा कि आज ज्ञान भूमि अंधकार में है और दारिद्रय में है और उसी समय उसे समर्थ बनाने का निर्णय किया। भारत किसी को कष्ट देकर विकास करने वाला देश नहीं है। यह अपनी आत्मीयता को विश्व में विस्तृत करने वाला देश है। स्वामी विवेकानन्द कहते हैं कि उठो और अपनी आध्यात्मिकता से विश्व को जीत लो। उक्त विचार समर्थ भारत पर्व के तहत अखिल भारतीय स्तर पर मनाए जा रहे कार्यक्रमों की श्रंखला में विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी शाखा अजमेर द्वारा भावी शिक्षकों को राष्ट्रनिर्माता के रूप में दायित्वबोध कराने के उद्देश्य से क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान के विद्यार्थियों के साथ विवेकानन्द केन्द्र की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सुश्री निवेदिता भिड़े ने संवाद के दौरान व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि शिक्षक कभी भी अपने आपको हीन न समझे। शिक्षक अपने बच्चों को जीवन मूल्य देने में सक्षम हो तथा यह केवल पाठ पढ़ाने से नहीं होगा अपितु इसके लिए शिक्षक को आचरण करना पड़ेगा।शिक्षक को अपने बच्चों से प्रेम करना सीखना होगा जिससे वे उन्हें सन्मार्ग पर ले जाने के लिए प्रेरित कर सकें। इस संवाद कार्यक्रम में मुख्य उद्बोधन के उपरांत छात्रों से चर्चा भी की गई जिसमें छात्र अपने प्रश्न भी पूछे। इस कार्यक्रम का आयोजन क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान के सभागार में आयोजित किया गया।
केन्द्र के नगर प्रमुख रविन्द्र जैन ने बताया कि इस अवसर पर क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान के प्राचार्य प्रो. वी के कांकरिया ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की तथा कार्यक्रम के संयोजक क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान के प्रोफेसर एस वी शर्मा थे। कार्यक्रम का संचालन केंद्र की कार्यकर्ता रीना सोनी ने किया। इस अवसर पर केन्द्र के प्रान्त प्रशिक्षण प्रमुख डॉ. स्वतन्त्र शर्मा, केन्द्र भारती सह संपादक उमेश चौरसिया व प्रान्त संगठक सुश्री प्रांजलि येरिकर भी उपस्थित थीं।