विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी की सोनीपत शाखा द्वारा गुरू पूर्णिमा का आयोजन किया गया और इसी के तहत डीन कल्चर एवं निदेशक सेंटर ऑफ हयूमन साईस ऋषिहुड विश्वविदालय श्री संपदानंद मिश्रा, को सम्मानित किया गया । उन्होंने बताया कि गुरुपूर्णिमा स्वय को यह याद दिलाने का अवसर है कि हम ईश्वर का कार्य कर रहे हैं । विवेकानंद केन्द्र प्रार्थना में कहते है- ‘निज परमहितार्थम’ – इस सदर्भ में निज का अर्थ है स्वयं के लिए और साथ ही समाज के लिए । महर्षि वेद व्यास की जयंती अनादि काल से हमारे देश में गुरू पूर्णिमा के रूप में मनाई जाती है । उन्होंने अपना पूरा जीवन वेदो और हमारी वैदिक विरासत को वयवस्थित करने में दिया । अब अत्यधिक भौतिकवाद और व्यक्तिवाद के कारण विखंडित होते जा रहे विश्व के कल्याण के लिए वेदो द्वारा दिए गए एकता का संदेश आवश्यक है तथा अपने पुराने वैभवशाली गौरव को पाने के लिए जो सिदांत वैदिक काल के आचार्यों/गुरूओं जैसे चाणक्य, महर्षि अरविंद, स्वामी विवेकानंद आदि ने दिये, उस सब पर काम करने जरूरत है और भारत में इस पर काम हो भी रहा है ।
उन्होने आगे बताया कि हम भारतीयों को धर्म में सबंध में जो भ्रांतिया है उसे दूर करने की आवश्यकता है जो वर्तमान मे केवल धार्मिक प्रथाओं कर्मकाण्डो, पूजा पाठ तथा भगवान को प्रसाद चढ़ाना, प्रार्थना तक ही सीमित है । स्वामी विवेकानंद जी के संदेश की व्याख्या करते हुए कहते हे कि धर्म के गहन अध्ययन का अर्थ है स्वयं में और जगत में ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव करना । यह व्यक्ति को भीतर के परमात्मा के बारे में जागरूक करता है और समाज में मानव जाति के कल्याण और प्रगति के लिए कार्य करने के लिए अर्थात राष्टीय पुनर्निमाण के कार्यों में परिवर्तित करने के लिए प्रेरित करता है ।
विवेकानंद केंन्द्र से उपस्थित विभाग संचालक डा.सुधीर गर्ग ने एक शिक्षक और गुरू के भेद को बताया और कहा कि शिक्षक बाहर से तैयार करता है जबकि गुरू आपको भीतर की यात्रा के लिए तैयार करता है । केन्द्र से उपस्थित श्री संजय भूटानी जी ने गुरू पूर्णिमा के उपलक्ष्य में विवेकानंद केन्द्र की उपाध्यक्ष की तरफ से प्राप्त पत्र को पढ़ा तथा बताया कि ओंकार वास्तव में ईश्वर की अभिव्यक्ति है । इस प्रकार सम्पूर्ण ब्रहाण्ड के कल्याण के लिए कार्य करने वालो के लिए ऊ की उपासना आवश्यक है । इसलिए विवेकानन्द केन्द्र में हमारे गुरू के रूप में ऊ है । ओंकार का अर्थ है प्रतिज्ञान, सृजन, समावेशी दृष्टिकोण और आत्म विलोपन। श्री भूटानी ने आगे बताया कि जहां दूसरो के लिए विचार, दूसरो की सेवा, स्वार्थ का अभाव, ईषर्या का अभाव है वहां ईश्वर अधिक स्पष्ट रूप से प्रकट होता है । भारत में अनादि काल से ऊ की उपासना का पालन किया जाता रहा है और इस प्रकार भारत अपने दृष्टिकोण में समावेशी रहा है ।
विवेकानन्द केन्द्र के सदस्य, सह नगर प्रमुख डा. कविता सिंह, शशि गर्ग, युवा प्रमुख श्री अनिल शर्मा, दीपांकर मदान, मुकेश गोयल, आदि भी उपस्थित रहें ।