विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी एक आध्यात्म प्रेरित सेवा संगठन है जो अपनी विशिष्ठ कार्यपद्धति योग, स्वाध्याय और संस्कार के माध्यम से ‘मनुष्य निर्माण से राष्ट्र पुनरुत्थान’ के कार्य में अपनी 874 शाखाओं के साथ अखिल भारतीय स्तर पर सक्रिय रुप से विगत 46 वर्ष से कार्य कर रहा है। विवेकानन्द केन्द्र की स्थापना माननीय एकनाथ जी रानडे ने 1972 में की जो कन्याकुमारी में स्थित श्रीपाद शिला पर विवेकानन्द शिला स्मारक निर्माण होने के पश्चात् विकास का दूसरा चरण है।
विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी अजमेर विभाग द्वारा 10 से 17 वर्ष के आयु वर्ग के बालक और बालिकाओं के लिए संस्कार वर्ग प्रशिक्षण शिविर 22 मई से 27 मई तक शहीद अविनाश माहेश्वरी आदर्श विद्या निकेतन भगवान गंज अजमेर में आयोजित किया गया। इस शिविर में कुल 116 छात्र छात्राओं में अपना पंजीकरण कराया तथा इस शिविर के संचालन में 26 कार्यकर्ताओं ने सक्रिय रूप से सहयोग किया।
शिविरार्थियों में किशनगढ,़ ब्यावर, नसीराबाद तथा अजमेर के भैया और बहन सम्मिलित हुए।
दिनांक 22 मई को सांय 7.00 बजे से भजन संध्या के साथ ही शिविर का प्रारंभ हुआ। उसके पश्चात परिचय सत्र में शिविरार्थियों एवं शिविर कार्यकर्ताओं का आपस में परिचय हुआ। परिचय के तुरंत बाद ही सभी विद्यार्थियों को विभिन्न गणों में बांट दिया गया। भाईयों के गणों के नाम नचिकेता, आरूणी, उपमन्यु, सत्यकाम रखे गए तथा बहनों के गण मैत्रेयी तथा गार्गी थे। प्रतिभागियों ने रात्रिकालीन ‘प्रेरणा से पुनरुत्थान’ सत्र में खेलों का आनंद लिया। 23 तारीख की प्रातः 4.45 पर शिविरार्थियों के जागरण के साथ ही प्रतिदिन की दैनिक दिनचर्या सुनिश्चित कर दी गई। इस दिन चर्या में प्रातः 5.30 बजे प्रातः स्मरण में आदि शंकराचार्य विरचित प्रातः स्मरण श्लोक, ऐक्य मंत्र का अभ्यास कराना और उसके पश्चात 6.00 बजे से 7.00 बजे तक प्रतिदिन योगाभ्यास, सूर्य नमस्कार, व्यायाम आदि और उसके उपरांत प्रतिदिन 7.00 बजे से 7.30 बजे तक बच्चों में परीक्षा के भय को दूर करने के लिए परीक्षा दे हंसते-हंसते योग प्रतिमान का आयोजन सम्मिलित था। इसके उपरांत प्रतिदिन गीता पठन के अभ्यास के साथ ही बच्चों 7.45 से 8.30 बजे तक अल्पाहार का समय रहता था।
अल्पाहार के उपरांत 8.30 बजे से 9.15 बजे तक श्रम संस्कार के समय बच्चे इस पूरे परिसर में मैदान, काॅरीडोर, अपने कमरों, स्नानागार एवं टॉयलेट आदि सब जगह साफ-सफाई करते और उसके पश्चात श्रम परिहार अर्थात स्नान इत्यादि करते थे।
प्रातः 10 बजे एवं सांय 4.15 पर दो बौद्धिक सत्रों का आयोजन किया जाता था। प्रातः 11 बजे सत्र समाप्ति के साथ ही मंथन सत्र एवं प्रस्तुतिकरण होता। भोजनोपरांत रचनात्मक सत्र के तहत बच्चों ने वैदिक गणित का अभ्यास श्रीमती पूजा गोयल एवं साक्षी चैहान के सान्निध्य में सीखा। सांयकालीन अल्पाहार के उपरांत शिविरार्थी संस्कार वर्ग में खेलों का आनन्द लेते जिनमें अनेक नए खेलों को बच्चों ने खेलना सीखा। समूह खेलों में मेंढक दौड़, सुरंग दौड, स्कंध युद्ध, फलों का राजा, भाई तुम कौन, टैंक युद्ध, हर हर महादेव, घूमता किला, मतीरे की फांक, डमरू दौड़, चंदन जैसे खेलों का आयोजन किया जाता और फिर 7.00 बजे भजन संध्या के पश्चात् रात्रिकालीन भोजन कराया जाता था। भोजनोपरांत प्रेरणा से पुनरूत्थान सत्र में प्रेरक जीवन एवं अनुभवों पर आधारित चलचित्रों एवं बौद्धिक खेलों के माध्यम से ज्ञानवर्द्धन व क्षमतावर्द्धन का प्रयास किया जाता था। रात्रि 9.30 पर हनुमान चालीसा के उपरांत दिनभर के किए कार्यों का आत्मावलोकन होता एवं उसके पश्चात् डायरी लेखन करके रात्रि 10.00 बजे निशास्वस्ति की जाती।
दिनांक 23 मई को प्रातः 10.15 बजे शिविर का औपचारिक उद्घाटन हुआ जिसमें मुख्य अतिथि अजमेर के मेयर श्री धर्मेंद्र गहलोत तथा कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि विद्या भारती संगठन के प्रांत अध्यक्ष श्री राम प्रकाश जी बंसल थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता विवेकानंद केंद्र के केंद्र भारती मासिक पत्रिका के सह संपादक श्री उमेश जी चैरसिया ने की।
उद्घाटन सत्र में महापौर जी ने बच्चों को संस्कारवान होने की प्रेरणा दी तथा बताया कि विवेकानंद केंद्र ने जो यह प्रयास किया है इससे हमें एक साथ खाने पीने सोने उठने और साथ रहने का अवसर प्राप्त होगा तथा हम अत्याधुनिक सुविधाओं से दूर रहकर एक ऋषि परंपरा और गुरुकुल परंपरा का पालन करते हुए अपने ये पांच दिन अपने जीवन के एक नए अध्याय के रूप में जोड़ेंगे। इसके साथ ही उन्होंने बच्चों को धैर्यपूर्वक इस शिविर में सुविधा और असुविधा के साथ तालमेल बिठाते हुए अच्छे से अच्छा सीखने का प्रयास करने की शिक्षा दी। विशिष्ट अतिथि श्री रामप्रकाश जी बंसल ने कहा कि संस्कार क्या है, उसे स्वीकार करना तथा समझना क्योंकि आज के समय की व्यस्त दिनचर्या, पाठ्यक्रम पूरा कराने की व्यस्तता तथा गृह कार्य आदि के कारण माता-पिता, गुरु जन संस्कार निर्माण पर उतना समय नहीं दे पाते हैं। अतः शिविर के दिनों में हमें कई कार्यों को करने से रोका-टोका जाएगा और कई कार्यो को करने के लिए कहा जाएगा। हमें अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए जो सिखाया जाए उसे सीखना चाहिए तथा वह जीवन में उतार कर जाएं। श्री बंसल ने बच्चों को इस कठिन तप के लिए अपना आशीर्वाद भी प्रदान किया। श्री उमेश जी चैरसिया के अध्यक्षीय उद्बोधन एवं आभार ज्ञापन के साथ ही उद्घाटन सत्र संपन्न हुआ।
उद्घाटन सत्र के पश्चात् राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय के योग शिक्षक श्री महबूब हुसैन ने बच्चों को व्यक्तित्व विकास की भारतीय संकल्पना पर आधारित वेद, वेदांत, उपनिषद और भारतीय संस्कृति के मूल में छिपे हुए गुणों को बहुत व्यवहारिक रूप में प्रस्तुत करते हुए बच्चों का मार्ग दर्शन किया। अपनी संगीत कला से खेल खेल में ही श्री हुसैन ने बच्चों को मंत्रों का सही उच्चारण एवं अर्थ भी समझाया। अपरान्ह् के सत्र में विभाग सह संचालक श्रीमती कुसुम गौतम ने स्वामी विवेकानंद के जीवन और संदेश को उनके प्रेरणादायक प्रसंगों से बच्चों को लाभान्वित किया। 24 मई को प्रथम सत्र विवेकानंद केंद्र की प्रांत संगठक सुश्री प्रांजलि येरिकर ने संस्कार वर्ग के महत्व के विषय में लिया जिसमें उन्होंने बताया कि आज भारत में राष्ट्र का चिंतन करने वाली पीढ़ी की आवश्यकता है। जहाँ आज का विद्यार्थी केवल अपने कैरियर और अर्थ का चिंतन करने में लगा है वहीं प्राचीन भारत में धर्म को ही अर्थ और काम का आधार बताया गया है। जीवन को धर्माधारित जीने का एक मात्र आधार संस्कार वर्ग है। हमारे देश में भगवान कृष्ण, समर्थ गुरू रामदास, शिवाजी महाराज जैसे उच्च चरित्रवान महापुरूषों ने समाज को संस्कारित करने का कार्य किया है। श्रीकृष्ण की गोपमण्डली, समर्थ रामदास के मठ, प्रवचन और व्यायामशालाएं ये सभी राष्ट्रीय चरित्र के निर्माण का स्थल थे। आज बच्चों को इस बारे में जानना चाहिए और इसके लिए संस्कार वर्गों के प्रशिक्षण शिविरों की आवश्यकता है।
सांयकालीन सत्र में केन्द्र के सह नगर प्रमुख अखिल शर्मा ने आदर्श दिनचर्या विषय पर बच्चों से संवाद किया और उन्हें आदर्श दिनचर्या के विषय में बताया।
25 मई को विवेकानंद केंद्र की कार्यालय प्रमुख बीना रानी जी ने भारतीय संस्कृति की विशेषताओं पर प्रकाश डाला। इसी दिन द्वितीय सत्र में विवेकानंद केंद्र के रामकृष्ण विस्तार के विस्तार संचालक एवं जवाहर लाल नेहरू चिकित्सालय अजमेर के वरिष्ठ शल्य चिकित्सक डॉक्टर श्याम जी भूतड़ा ने बच्चों से संवाद किया। उन्होंने बताया कि विवेकानन्द केन्द्र के संस्थापक एकनाथ रानडे ने कार्यकर्ताओं को जीवन का एक मात्र सूत्र जो दिया वह था समय पालन। स्वामी विवेकानन्द के राष्ट्रीय स्मारक के निर्माण का उत्तरदायित्व जब एकनाथजी के कंधों पर आया तब उन्होंने न केवल उसे समयबद्ध तरीके से पूर्ण किया अपितु स्वामी विवेकानन्द के जीवन्त स्मारक विवेकानन्द केन्द्र की स्थापना कर पूरे भारत में उसकी शाखाएं खोलने का बीड़ा उठाया। एक जीवन एक ध्येय का मंत्र साकार करते हुए उन्होंने साधारण जीवन जीते हुए भी असाधारण कार्य कर दिया। उन्होंने बच्चों को एकनाथ जी के जीवन से जुड़े विभिन्न प्रसंगों को सुनाते हुए उनकी निडरता, समय बद्धता, कार्यकुशलता, आज्ञापालन एवं कार्य को पूर्ण कुशलता से करने के गुणों से अवगत कराया। उन्होंने कहा कि एकनाथ जी रानडे के बचपन के संस्कारों का उल्लेख करते हुए कहा कि वे अपने साथ जुड़े लोगों से आत्मीय संबंध बनाते हुए उनके मनोभावों को बदलने की क्षमता भी रखते थे।
अगले दिन 26 मई को विवेकानंद केंद्र के केंद्र भारती के सह संपादक उमेश कुमार चैरसिया ने भारत भक्ति विषय पर प्रथम सत्र लिया जिसमें उन्होंने कहा कि हमारे जीवन में उत्कृष्टता का मानदण्ड निर्धारित करने वाले कारक चरित्र व्यवहार और संस्कार ही होते हैं। हम चाहे अच्छे वकील, डाॅक्टर, इंजीनियर या प्रशासनिक अधिकारी बन जाएं किंतु इस भारत भूमि का कर्ज उसी प्रकार नहीं भूलना चाहिए जैसे एक बेटा अपने माँ के ऋण से उऋण नहीं हो सकता। स्वामी विवेकानन्द ने अपने जीवन के द्वारा भारत से प्रेम, भारत की सेवा और भारत की आराधना करने का उद्घोष किया। स्वामी विवेकानन्द के उक्त विचारों से ही प्रेरित होकर भारत को बालगंगाधर तिलक, सुभाष चन्द्र बोस, ए.पी.जे अब्दुल कलाम और एकनाथ रानडे जैसे महापुरूष मिले जिन्होंने अपने महान कार्यों द्वारा भारत माँ का सच्चा सपूत होने का कर्ज अदा किया। आज हमारे विद्यार्थी जीवन में स्वामी विवेकानन्द की शिक्षाओं को मूर्त रूप देने का जरिया अपने मोहल्ले का संस्कार वर्ग बन सकता है जिससे घर घर में संस्कारों का बीजारोपण हो सकगा और हमें इसके लिए पूर्ण प्रयत्नशील रहना होगा। द्वितीय सत्र में निखिल शर्मा द्वारा राजस्थान के गौरवमयी इतिहास परंपरा का यशोगान से शिविरार्थियों को परिचय कराया। इसी दिन प्रेरणा से पुनरूत्थान में केन्द्र कार्यकर्ता डाॅ0 भरत सिंह गहलोत द्वारा शिविरार्थियों को सामान्य स्वास्थ्य एवं उसकी जाग्रति हेतु बहुत ही रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की गई।
आज 27 मई को बच्चों द्वारा प्रातः 51 सूर्यनमस्कारों का अभ्यास किया गया तथा इसके उपरांत आहूति सत्र का आयोजन जगदीश भैया ने लिया जिसमें उन्होंने बच्चों को अपने मौहल्लों में संस्कार वर्ग खड़े करने के तरीकों तथा नए भैया व बहनों में संस्कारों के निरूपण पर चर्चा की।
नए संस्कार वर्गों के गठन एवं पुराने संस्कार वर्गों के दृढ़ीकरण के लिए आयोजित बैठक का आयोजन जगदीश टवरानी के मार्गदर्शन में हुआ।
अपरान्ह् 11 बजे से शिविर का समापन समारोह आरंभ हुआ। समापन समारोह के मुख्य अतिथि महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय, अजमेर के कुलपति प्रो0 विजय श्रीमाली थे। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि प्रसिद्ध उद्योगपति एवं मोटिवेशनल स्पीकर श्री राधे एस चोयल थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता नगर प्रमुख रविन्द्र जैन ने की। समापन समारोह से पूर्व कुलपति महोदय ने शिविरार्थियों द्वारा शिविर में बनाई गई पेंटिंग्स का अवलोकन किया। समारोह की प्रारंभिक औपचारिकताओं के साथ ही कुलपति जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि संस्कार निर्माण का कार्य केवल पांच दिन के शिविर तक सीमित न रहे बल्कि यह एक अनवरत प्रक्रिया के रूप में चलता रहे। प्रत्येक भारतीय को हिन्दू होने पर गर्व होना चाहिए तथा समाज को उन्नत बनाने की दिशा में प्रत्येक कार्यकर्ता को निष्काम भाव से अपने धर्म और समाज की सेवा करनी चाहिए। विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी एक राष्ट्रीय स्मारक है और यही वह केन्द्र है जिसकी ऊर्जा भारत के प्रत्येक कोने में प्रवाहित होती है। प्रत्येक भारतीय का यह कर्तव्य होना चाहिए कि एक बार कन्याकुमारी स्थित विवेकानन्द शिला के दर्शन अवश्य करके आए। विवेकानन्द केन्द्र के संस्कार वर्ग प्रशिक्षण में भाग लेने वाला प्रत्येक बालक विचारवान है। उन्होंने शिविरार्थियों द्वारा बनाई गई पेंटिंग्स का अवलोकन करते हुए कहा कि पर्यावरण पर काफी चित्रों का निर्माण बच्चों ने किया है किंतु पर्यावरण के प्रति सच्ची श्रद्धा तभी व्यक्त होगी जब हम पेड़ लगाएं और उनकी देखभाल करें। प्रो. श्रीमाली ने अपने बचपन में विद्यालय के अनुभव साझा करते हुए गुरू गोविंद सिंह के जीवन से जुड़ी घटनाओं से जुड़े गीत गाकर शिविरार्थियों को सुनाए।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि के रूप में उद्योगपति एवं मोटिवेशनल स्पीकर राधे एस चोयल ने बच्चों का आह्वान करते हुए कहा कि हमारे माता पिता के चरणों में स्वर्ग होता है। शिविर में बच्चों को मंत्र सिखाए गए हैं क्योंकि मंत्रों से मस्तिष्क को साधा जा सकता है और इससे शक्ति का संचार होता है। शक्ति के कारण ही आत्मविश्वास प्रबल होता है किंतु अतिआत्मविश्वास से हमें बचना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी सामथ्र्य से बढ़कर देने का भाव रखना चाहिए तथा बच्चों को अपने देश के खिलाफ कुछ भी न सुन सकने की क्षमता पैदा करनी चाहिए।
इससे पूर्व शिविर प्रमुख लाजवंती भारद्वाज ने शिविर प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। शिविर अधिकारी नितिन गोयल ने बताया कि समापन समारोह में शिविरार्थियों द्वारा भजन, सूर्यनमस्कार, संस्कार वर्ग चलें, वैदिक गणित तथा गीता पठन की प्रस्तुतियाँ दी गईं। शिविरार्थी लक्षित यादव, हेमेन्द्र, जितेन्द्र, ऋषि खारोल, अंजलि तथा लक्षिता ने अपने अनुभव साझा किए।
श्री गोयल ने बताया कि समापन समारोह के अवसर पर नगर के गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे जिनमें क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान के प्राचार्य प्रो0 जी विश्वनाथप्पा, डीन शिक्षा प्रो. नागेन्द्र सिंह, डाॅ. बी एस गहलोत, विद्या भारती संगठन के प्रान्त अध्यक्ष राम प्रकाश बन्सल, अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक रैफरी डाॅ. अतुल दुबे, विश्वविद्यालय के योग शिक्षक डाॅ. लारा शर्मा, साहित्य अकादमी के सदस्य उमेश कुमार चैरसिया, विवेकानन्द केन्द्र की विभाग सह संचालक कुसुम गौतम, कुशल उपाध्याय, मनोज बीजावत सहित सभी कार्यकर्ता भी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन प्रान्त प्रशिक्षण प्रमुख डाॅ. स्वतन्त्र कुमार शर्मा ने किया।
समारोह के उपरांत सभी शिविरार्थियों, अतिथियों, अभिभावकों एवं कार्यकर्ताओं ने सामूहिक भोज का आनन्द लिया। इसके उपरांत सिंहावलोकन बैठक के उपरांत सभी कार्यकर्ता एवं शिविरार्थी अपने अपने नगरों को रवाना हो गए।