विवेकानंद केन्द्र कन्याकुमारी,महाराष्ट्र प्रांत के *विवेक चेतना* उपक्रमतहत एक व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया जिसका अंतिम चरण रविवार दिनांक 14 नवंबर 2021 को पूर्ण हुआ। डा. श्री. गिरीश बापट, संचालक ज्ञान प्रबोधिनी पूना एवं सुश्री. निवेदितादीदी भिडे, (पद्मश्री पुरस्कृत) राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी के मार्गदर्शक शब्दोंसे संपन्न हुआ।
कार्यक्रम का प्रारंभ विवेकानंद केंद्र की परंपरानुसार प्रार्थना से हुआ। कु. रिद्धीने प्रस्तावना संक्षेपमें परंतु स्पष्टता से की। पश्चात "नवचैतन्य हिलोरे लेता" यह गीत अनया दंडवतेने सभी युवाओं को उत्साहित करनेवाले स्वर में प्रस्तुत किया। दोनो वक्ता का परिचय देने की औपचारिकता पूर्ण हुई| उनका वास्तविक परिचय उनके वक्तव्य के प्रत्येक शब्दसे अधिक प्रगटीत हुआ।
प्रथम वक्ता डा.गिरीशजी बापट ने अपने वक्तव्य का प्रारंभ माननीय एकनाथ जी के "सेवा साधना" इस ग्रंथ के एक वाक्य से किया। आपने कहा - प्रत्येक युवक किसी न किसी प्रेरणासे घर के बाहर कदम रखता है। यह प्रेरणा करुणासे जन्मी हो तो सेवा, सहयोग के रूप में कार्यरत होती है। जिन दुःखी,आर्त, दीन, रोगी, अनपढोकी सेवा होती है वह परमेश्वर की पूजा के रूप में करना आध्यात्मिक प्रेरणा होगी। उनका विषय "राष्ट्र सेवा युवाओं के लिए उत्तम करियर" ऐसा था। वर्तमान भौतिकवादी युग में करियर अर्थार्जन का ही एक रूप है, यही भाव है। ऐसे समय में आपने राष्ट्र सेवा करियर बन सकती है यह विचार बहुत सशक्त रूप से युवाओं के सामने रखा।
समाज या राष्ट्र के लिए क्या व कैसे करना यह उन्होंने बहुत छोटे- छोटे उदाहरण देते हुए बताया। सेवा का कार्य यह गड्ढे या दलदल को भरने जैसा है, यह भराव बहुत महत्त्वपूर्ण है; उसी पर एक सशक्त इमारत खड़ी हो सकती है । यह इमारत खड़ी करना यह गतिशील, उद्यमशील लोग करते हैं इसके लिए आपने "एक्सेल उद्योग समूह" के कांति भाई श्रॉफ,का कछ की दीमा पर उद्योग डालना या डॉ.वसन्त गोवारीकर ने विक्रम साराभाई की विनति पर भारत में आकर उनके संशोधन का लाभ राष्ट्र को देने की बात स्वीकारना; तंत्रक्षेत्र के उद्योजक श्री सालुंके का अपने गांव में "पानी पंचायत" के माध्यम से विकास करना - ऐसे उदाहरण रखे। ‘युवकों ने वर्तमान में समाज में ग्रामीण क्षेत्र में घुल मिलकर वहां की छोटी-छोटी समस्याएं जैसे - प्रदूषण, पानी, पर्यावरण इनको समझकर जनजागरण करना एवं उस आधार पर उद्योग का विचार करना अथवा ऐसे क्षेत्र में इस राष्ट्रभाव से कार्यरत किसी उद्योजक के साथ जुड़कर नौकरी के रूप में सेवा करना भी राष्ट्र सेवा होती है’ यह विचार स्पष्ट किया एवं इसके लिए युवकों को सहज और सरल रूप से मार्गदर्शन करते हुए प्रेरित किया की ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को स्व-रोजगार हेतु आवश्यक कौशलों में प्रशिक्षित करना भी राष्ट्र सेवा होगी। यह प्रशिक्षण आपका करियर हो सकता है यह भी दृष्टिकोन दिया। उस पश्चात उन्होंने प्रश्नों के उत्तर देते हुए एक प्रश्न का बहुत ही समाधानकारक उत्तर दिया। प्रश्न था - "जब सम्पूर्ण विश्व एक हो रहा है, ग्लोबलाइजेशन है तब हम विश्व का विचार करें यह उचित होगा या राष्ट्र का?" तब उनका कहना था कि, कोविड ने हमें पहले स्वयं का बचाव करना सिखाया है, पहले स्वयं को सुरक्षित करूं। स्वयं के राष्ट्र को सक्षम करो, स्वयं के राष्ट्र का विकास करो फिर विश्व की भी बात हम निश्चित रूप से कर सकते हैं और करेंगे।
दूसरी वक्ता विवेकानन्द केन्द्र की सभी की आदरणीय मा. निवेदिता ताई भिड़े (पद्मश्री विभूषित) थीl विषय था "ध्यास -राष्ट्र पुनर्निर्माण का"l यह राष्ट्रीय पुनर्निर्माण क्या होता है और क्यों यह उन्होंने बहोत ही सहज और सरल शब्दों में स्पष्ट कर दिया।क्योंकि यह पुनर्निर्माण जब तक समझ में नहीं आता तब तक इस पर चिन्तन संभव नहीं है। पुनर्निर्माण किस आधार पर हो तो ताई ने बताया, कि हमारा राष्ट्र सनातन राष्ट्र है। प्राचीन काल से विज्ञान का आधार लेते हुए सृष्टि और इस निसर्ग के साथ रह कर, पर्यावरण का ,सृष्टि का बिना शोषण किए, समाज के किसी व्यक्ति का बिना शोषण किए एक उन्नत राष्ट्र था। इस प्रकार 'सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया' का भाव व्यवहार में ला कर हम उत्कर्ष कर सकते हैं यह दिखाने वाला राष्ट्र था। परन्तु गत कुछ सदियों से यह हमारा स्वत्व जान बूझ कर नष्ट करने के प्रयास होते रहे l अतः इस विचार का, इस कृति की पुनर्स्थापना, पुनर्जागरण राष्ट्रीय पुनर्निर्माण है। व्यक्ति या मनुष्य को कितना भी विकसित कर दें उसका निर्माण हो जाए परन्तु उसमें राष्ट्रबोध नहीं होगा तो राष्ट्र का निर्माण नहीं होगा। इसका मुख्य आधार होगा राष्ट्र का आत्मनिर्भर होना। उस राष्ट्र का स्वत्व प्रत्येक क्षेत्र में प्रकट हो इसका ध्यास, यह जिद राष्ट्र के प्रत्येक व्यक्ति को होना चाहिए। इस हेतु संवेदनशील मन की आवश्यकता होगी। वह संवेदना मैं करता हूं के भाव के साथ नहीं वरन परमेश्वर की सेवा भावसे सामने आए।
आत्मनिर्भरता के लिए स्वयं उद्योजक क्षेत्र में जाना अथवा राष्ट्र सेवा की दृष्टि से जो उद्योग हैं उनमें अपनी सेवाएं देना यह भी एक बात होती है, साथ ही वर्तमान के साथ चलने की भी आवश्यकता को समझना चाहियेl हमें अपडेट रहना आवश्यक है और इस राष्ट्र सेवा के ध्यास के लिए हम ऐसे क्षेत्रों में जाकर कार्य करें जहां राष्ट्र की वहां के व्यक्तियों की उनकी आवश्यकताओं की उनके दुखों का हमें ज्ञान हो सके।
साथ ही उसके लिए आवश्यक हिम्मत ,आत्मविश्वास, मन की शक्ति आवश्यक है। प्रारम्भ में अपयश आये तो उसका सामना करने का धैर्य,उससे पार जाने की तैयारी भी होनी चाहिए। इसीलिए ताई ने युवकों को आह्वाहन दिया कि आने वाला वर्ष भारत का "स्वराज्य ७५" है। तब हमें पुनः विवेकानन्द की हिन्दू राष्ट्र जागो, अथवा गांधीजी के राम राज्य या महर्षि अरविन्द ने अंत में जो कहा था -" सनातन राष्ट्रधर्म यह इस राष्ट्र की राष्ट्रीयता है , तो उसके संरक्षण की दृष्टि से और संवर्धन की दृष्टि से कार्य करना होगा।" इसका एक मार्ग विवेकानन्द केन्द्र में एक वर्ष तक अपनी सेवा देने का प्रयास हो सकता है।
निवेदिता ताई ने सभी प्रश्नों के बहुत ही समर्पक और मार्गदर्शक ऐसे उत्तर देते हुए वक्तव्य का समापन किया। पश्चात् अमोल अहिरे जी ने आभार प्रदर्शन की औपचारिकता की और अंत में केन्द्र प्रार्थना "सर्वे भवन्तु " से कार्यक्रम का समापन हुआ ।
इस आनलाईन कार्यक्रम मे महाराष्ट्र प्रांत के प्रमुख अभय बापट, प्रांत संघटक सुश्री सुजाता दीदी दलवी एवं सभी नगरो के कार्यकर्ता और सहभागी उपस्थित थेl कुल उपस्थिती 560 के आसपास रही l