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Conference on Swami Vivekanandaएसडी पीजी कॉलेज में “स्वामी विवेकानंद: द वाइस ऑफ़ यूथ” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का सारगर्भित समापन
आज की गतिविधियाँ: भाषण, खेल, प्रेजेंटेशन, डिस्कशन

उच्चतर शिक्षा विभाग द्वारा प्रायोजित दो दिवसीय नेशनल कोन्फेरेंस का एसडी पीजी कॉलेज में आज विधिवत एवं सारगर्भित समापन हो गया. “स्वामी विवेकानंद: द वाइस ऑफ़ यूथ” थीम लिए इस सेमिनार ने प्रदेश के सुदूर कोनो से आये विवेकानंद विद्वानों और रिसर्च स्कोलर्ज को अपनी तरफ खिंचा. दूसरे दिन के मुख्य वक्ता श्री अशोक बत्रा, प्राचार्य हिन्दू कॉलेज रोहतक और श्री दशरथ चौहान, विभाग प्रमुख विवेकानंद केंद्र हरियाणा प्रान्त रहे. सुश्री अलका गौरी जोशी, प्रान्त संगठक विवेकानंद केंद्र हरियाणा प्रान्त ने प्रतिभागियों और रिसर्च स्कोलर्ज को खेल, प्रेजेंटेशन और डिस्कशन के माध्यम से व्यवहारिक प्रशिक्षण दिया तथा उन्हें खुद से आत्मसात किया. प्रदेश के भिन्न-भिन्न कालेजो से आये रिसर्च सकोलर्स और प्राध्यापको ने भी आज की कार्यशाला में भाग लेकर स्वामी विवेकानंद के बताये मार्ग पर चलने का प्रण लिया. सिरसा, कैथल, पंचकुला, अम्बाला आदि से आये रिसर्च सकोलर्स ने इस दो दिवसीय कोन्फेरेंस में स्वामी विवेकानंद पर लिखे अपने शोध पत्र भी प्रस्तुत किये.

मुख्य वक्ता श्री अशोक बत्रा, प्राचार्य हिन्दू कॉलेज रोहतक ने अपने वक्तव्य में स्वामी विवेकानंद द्वारा विश्व धर्म सम्मलेन में दिए गए भाषण का जिक्र करते हुए कहा कि उनके द्वारा बोले गए शब्द उन्हें आज भी याद है, “मेरे अमेरिकी बहनों और भाइयों, आपके इस स्नेह्पूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय आपार हर्ष से भर गया है। मैं आपको दुनिया के सबसे पौराणिक भिक्षुओं की तरफ से धन्यवाद् देता हूँ”. श्री बत्रा ने कहा कि दुनिया को शहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का जो पाठ विवेकानंद ने पढाया है वह दुर्लभ है. शब्दों का चुनाव कैसे हो, और कैसे एक-एक शब्द हमारा पूरा व्यक्तित्व ही बदल सकता है यह सन्देश हमें स्वामीजी ने ही समझाया है. श्री बत्रा ने आज इस अवसर का लाभ उठाते हुए उपस्थित प्रतिभागियों को लिखने कि कला और शब्दों कि ताकत के बारे में विस्तार से समझाया.

सुश्री अलका गौरी जोशी ने कहा की आज की भाग-दौड़ की जिंदगी में किसी के पास भी इतना समय नहीं है के वह आत्म-चिंतन और गंभीर मंथन कर सके। मानसिक-अवसादों के कारण हमारा व्यक्तित्व और स्वास्थ्य दिन प्रतिदिन गिर रहा है। ऐसे में आत्मिक संतुष्टि और संतुलन के लिए विवेकानंद विचारों को हमें अपनाना चाहिए। जब बाहरी शोर हमें सुनना बंद हो जाएगा तभी हमें मन की आवाज़ सुनाई देगी. तत्पश्चात खेल, प्रेजेंटेशन और डिस्कशन के सत्र में सुश्री अलका गौरी जोशी, प्रान्त संगठक विवेकानंद केंद्र हरियाणा प्रान्त ने प्रतिभागियों के भीतर छिपी प्रतिभा और उर्जा को कैसे नियंत्रित किया जाए के बारे बखूबी प्रशिक्षण किया. इस सत्र में सोने के समय का ध्यान लगाने में कैसे उपयोग किया जाये, तरक्की और आध्यात्म में सामंजस्य कैसे स्थापित किया जाये, धर्म का अध्ययन कैसे हो, प्रश्न पूछने से पहले कैसे ज्ञान प्राप्त किया जाये, क्या ध्यान सिर्फ एकांत में ही संभव है जैसे कितने ही अलग-अलग विषयों पर सकोलर्स और प्रतिभागी छात्र-छात्राओं को व्यवहारिक ज्ञान और प्रशिक्षण दिया गया. प्राणायाम, योग तथा स्वाध्याय का व्यावहारिक ज्ञान भी इसी सत्र में दिया गया। सुश्री अलका गौरी जोशी ध्यान लगाने की प्रक्रिया को भी स्वयं कर के समझाया।

अपने सारगर्भित और ओजस भाषण में श्री दशरथ चौहान, विभाग प्रमुख विवेकानंद केंद्र हरियाणा प्रान्त ने आज स्वामी विवेकानंद के जीवन, शिक्षाओं और महान विचारों पर आधारित कहानियां और रोचक एवं शिक्षापूर्ण घटनाएं प्रतिभागियों को सुनाई। इन कथाओं को सुनाने का तात्पर्य नौजवानों में नया जोश और प्रेरणा भरना था. हममे दान की प्रवृति को खुद में सैदेव रखना चाहिए. जीवन में रिश्तों कि भी बहुत अहमियत है. एकाग्रता रखने वाला व्यक्ति जीवन में कभी असफलता का मुख नहीं देखता. गुलाम रहने वाले लोगों का कोई धर्म नहीं होता. उन्होनें कहा की जब तक विवेकानंद की दी गई शिक्षा हमारे मन-मस्तिष्क में रच-बस नहीं जाती तब तक पारंपरिक शिक्षा ग्रहण करने का कोई औचित्य नहीं है। हमें अपनी इंद्रियों की लगाम को काबू में रखना आना चाहिए और ‘अहं’ को काबू रखना भी हमने ही सीखना है. कामनाओं और इच्छाओं को नियंत्रण में रख कर ही हम जीवन में सही निर्णय ले सकते है। जीवन में किसी ना किसी लक्ष्य को निर्धारित करना बहुत जरूरी है और फिर उन लक्ष्यों को पाने का तरीका भी उचित होना चाहिए. हमारे मन सैदेव सुविचार ही आने चाहिए। स्वामी विवेकानंद के विचारों में जीवन जीने की कला और शक्ति व्याप्त है। स्वामीजी को पढ़ने से खुद में शक्ति और आत्मविश्वास का नव संचार होता है। स्वामी विवेकानंद से बड़ा कोई पथ प्रदर्शक नहीं है। स्वामीजी कहते थे की यदि हमने परमपिता परमात्मा की सेवा करनी है तो पहले देश की सेवा करनी होगी. हर व्यक्ति में एक जैसा ही प्रकाश-पुंज मौजूद होता है, बस उसे पहचानना आना चाहिए. स्वामीजी ने इसी प्रकाश-पुंज कुंज को जानने में हमारी मदद की है। उन्होनें कहा की आज़ादी के सही मायने ज़िम्मेदारी के साथ आते है।

----------------------(आज सुनाई गई विवेकानंद कहानियां)------------------

विवेकानंद की कहानियां सुनते हुए श्री दशरथ चौहान ने प्रतिभागीओं को मन्त्र-मुग्ध कर दिया. एक बार स्वामी विवेकानंद के विदेशी मित्र ने उनके गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस से मिलने का आग्रह किया और कहा की वह उस महान व्यक्ति से मिलना चाहता है जिसने आप जैसे महान व्यक्तित्व का निर्माण किया. जब स्वामी विवेकानंद ने उस मित्र को अपने गुरु से मिलवाया तो वह मित्र, स्वामी रामकृष्ण परमहंस के पहनावे को देखकर आश्चर्यचकित हो गया और कहा – “यह व्यक्ति आपका गुरु कैसे हो सकता है, इनको तो कपड़े पहनने का भी ढंग नहीं है.” तो स्वामी विवेकानंद ने बड़ी विनम्रता से कहा – “मित्र आपके देश में चरित्र का निर्माण एक दर्जी करता है, लेकिन हमारे देश में चरित्र का निर्माण आचार-विचार करते है.”

श्री दशरथ चौहान ने एक और कहानी सुनाते हुए कहा की स्वामी विवेकानंद बचपन से ही निडर थे.
जब वह लगभग 8 साल के थे तभी से अपने एक मित्र के यहाँ खेलने जाया करते थे.उस मित्र के घर में एक चम्पक पेड़ लगा हुआ था.वह स्वामीजी का पसंदीदा पेड़ था और उन्हें उसपर लटक कर खेलना बहुत प्रिय था. रोज की तरह एक दिन वह उसी पेड़ को पकड़ कर झूल रहे थे की तभी मित्र के दादा जी उनके पास पहुंचे,उन्हें डर था कि कहीं स्वामीजी उस पर से गिर न जाए या कहीं पेड़ की डाल ही ना टूट जाए, इसलिए उन्होंने स्वामी जी को समझाते हुए कहा, “नरेन्द्र,तुम इस पेड़ से दूर रहो, और अब दुबारा इस पर मत चढना.”
“क्यों?” नरेन्द्र ने पूछा.
“क्योंकि इस पेड़ पर एक ब्रह्म्दैत्य रहता है.वो रात में सफ़ेद कपडे पहने घूमता है, और देखने में बड़ा ही भयानक है.” उत्तर आया.
नरेन्द्र को ये सब सुनकर थोडा अचरज हुआ, उसने दादा जी से दैत्य के बारे में और भी कुछ बताने का आग्रह किया.
दादा जी बोले, “वह पेड़ पर चढ़ने वाले लोगों की गर्दन तोड़ देता है.” नरेन्द्र ने ये सब ध्यान से सुना और बिना कुछ कहे आगे बढ़ गए . दादा जी भी मुस्कुराते हुए आगे बढ़ गए, उन्हें लगा कि बच्चा डर गया है. पर जैसे ही वे कुछ आगे बढे नरेन्द्र पुनः पेड़ पर चढ़ गया और डाल पर झूलने लगा.
यह देख मित्र जोर से चीखा, “अरे तुमने दादा जी की बात नहीं सुनी, वो दैत्य तुम्हारी गर्दन तोड़ देगा.”
बालक नरेन्द्र जोर से हंसा और बोला, “मित्र डरो मत! तुम भी कितने भोले हो! सिर्फ इसलिए कि किसी ने तुमसे कुछ कहा है. ऐसे कभी यकीन मत करो;खुद ही सोचो,अगर दादा जी की बात सच होती तो मेरी गर्दन कब की टूट चुकी होती.” इतने निडर और साहसी थे स्वामी विवेकानंद. ऐसे कितने ही किस्से आज श्री दशरथ चौहान ने प्रतिभागियों को सुनाये.

प्राचार्य डॉ अनुपम अरोड़ा ने अपने वक्तव्य में कहा की दुनिया में आज एक प्रकार की खंडता हो गई है और इंसान-इंसान से दूर हो गया है. स्वामी विवेकानंद के विचार इसी खण्डता के भावों को दूर करते है और लोगों में छुपी दिव्य ज्योति को उनसे रुबरु कराते है। जिन समस्याओं से आज हम जूझ रहे है यदि हम थोड़ा सा भी स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं एवं उनके विचारों को अपना ले तो ये समस्याएँ खुद-ब-खुद छू-मंतर हो जाएंगी।

इससे पहले माननीय मेहमानों का स्वागत एसडी पीजी कॉलेज प्रधान श्री दिनेश गोयल, प्राचार्य डॉ अनुपम अरोड़ा, डॉ रवि बाला और डॉ बाल किशन शर्मा ने किया. डॉ संगीता गुप्ता ने मंच का संचालन किया. प्रो यशोदा अग्रवाल ने आज प्रतिभागियो को विवेकानंद देश भक्ति गीत “धर्म के लिए जिए, समाज के लिए जिए; ये धड़कने ये सांस हो मात्रभूमि के लिए” गाकर सुनाया और सिखाया जिससे कोन्फेरेंस का माहौल देशभक्ति के भावो से औत-प्रौत हो गया।

इस अवसर पर कॉलेज के स्टाफ सदस्य डॉo सुरेन्द्र कुमार वर्मा, डॉo रवि बाला, डॉo राकेश गर्ग, प्रोo मयंक अरोड़ा, प्रोo इंदु पूनिया, प्रो यशोदा अग्रवाल, दीपक मित्तल आदि भी मौजूद रहे।

(प्राचार्य)
डॉ अनुपम अरोड़ा

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