विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी शाखा इंदौर की और से मा. एकनाथजी जन्म शती पर्व के अंतर्गत सफल युवा युवा भारत अभियान का युवा सेवा प्रशिक्षण शिविर दिनांक ९ अप्रैल से १२ अप्रैल २०१५ को इन्दौरे नगर में मानव सेवा ट्रस्ट में आयोजित किया गया। शिविर में चिंतन युवा सेवा के विषयों को लेकर किया गया।
शिविर में मा. एकनाथजी के गुणों को लेकर गण के नाम दिए गए थे – १. दृढ़ता, २. सातत्य, ३. निष्ठा, ४. संगठन।
शिविर की दिनचर्या सुबह जागरण से प्रारंभ होकर प्रार्थना, योग, परिसर स्वछता, बौद्धिक सत्र, गट चर्चा, प्रस्तुति, नैपुण्य वर्ग, गीत व मंत्र अभ्यास, शारीरिक अभ्यास, भजन संध्या, प्रेरणा से पुनरुत्थान कर हनुमान चालीसा का पाठ कर रात्रि समाप्त होती थी। प्रेरणा से पुनरुत्थान में मा. एकनाथजी का जीवन सभी शिविरार्थियो तक पहुचाया गया। शिविर के समापन सत्र में शिविर अधिकारी श्री शरदजी वाजपेयी व मानव सेवा ट्रस्ट के ट्रस्टी श्री विष्णुजी गोयल उपस्थित थे, समापन में शिविर अधिकारीजी ने आव्हान किया की सेवा का पक्ष मातृभूमि के प्रति समर्पित होना होगा, जिससे राष्ट्र का निर्माण हो यही हमारा एकमेव भाव मन में रख कर सेवा करनी है। स्वामीजी का जीवन, मा एकनाथजी का जीवन यह सेवा कार्य का हमारा आधार हो।
शिविर में कुल ११ महाविद्यालय से ७० विद्यार्थिओं ने भाग लिए, जिसका संचालन कुल २० कार्यकर्ताओं ने किया।
बौद्धिक सत्र
सत्र १
१ स्वामी विवेकानंद की दृष्टी – हे भारत उठो जागो और अपनी आध्यात्मिकता से सारे विश्व को आप्लावित कर दो यह सत्र आ. विभाशजी उपाध्याय द्वारा लिया गया ...
* स्वामी विवेकानंद का चित्र देखते ही लगता है की उनसे हमारा जन्म जन्मान्तर का सम्बन्ध है।
* ईश्वर को देखने की इच्छा का अर्थ है ह्रदय की पवित्रता।
* प्रत्यक्ष देखना याने दो आँखों से देखना, और दूसरा याने मन की आँखों से देखना।
* भगवदप्राप्ति यह मनुष्य को प्राप्त ही करना है।
* ठाकुरजी कहते है नरेन्द्र आया नही मै लेकर आया हु।
* स्व का बोध न होने के कारण व आत्मा विस्मृती के कारण से राष्ट्र का पतन हुआ।
* स्वामीजी का मूल मंत्र है व्यक्ति निर्माण और उसका अधिष्ठान है वेदांत।
* भगवान का साक्षात्कार करने से पुनर्जन्म में आना जाना बंद हो जाता है।
* अपनी बात को सही ठहराने का प्रयास करना याने अज्ञान।
* स्वामीजी का पश्चिम में जाना यह विश्व में आध्यात्मिक जागरण का पुनः प्रारंभ है।
* पश्चिम के चार तत्व जिसने मूल से हानि पहुचायी जिसको स्वामी विवेकानंद समज गए थे ,
१ जो श्रेष्ठ है वह जीवित है।
२ जीवन यह संघर्ष है – अपने को जीवित रहना है तो संघर्ष करो ,
३ प्रकृति मनुष्य के लिए बनायीं है जितना भोग कर सकते हो करो
४ मनाव अधिकार – अपने अधिकार की चिंता करना
स्वामीजी ने इसके समाधान यह पश्चिम को बताये
१ सर्वे भवन्तु सुखिनः ,
२ संघर्ष होता ही नहीं है जो संघर्ष दिखता है वह माया है – सूर्य व बादल दिखने के लिए बादल है परन्तु उसके पीछे सूर्य है,
३ मनुष्य यह प्रकृति का अंग है न की वह प्रकृति का राजा ,
४ कर्तव्य बोध
* सत्य को जानने के लिए मन के परे जाना होगा उसका मार्ग है आध्यात्मिकता,
* धर्म का प्रगटीकरण यह आध्यात्मिक आचरण का व्यवहारिक पक्ष है,
* भीतर की शक्ति को जागृत कर बाहर प्रकट करो,
* आत्मनो मोक्षार्थं जगत हितायच....
सत्र २
विवेकानंद केंद्र – विलक्षण व परिभाषा
आ. सुब्रतो गुहा
* सृष्टि का प्रथम राष्ट्र होने का गौरव यह भारत को है।
* जो अपने क्षेत्र में ईमानदारी व निष्ठा से कार्य करता है उनसे ही ईश्वर प्रसन्न होते है और मिलते है।
* सामान्य से असामान्य बनाने के लिए एक दृढ़ इच्छा शक्ति की आवश्यकता होती है। मा. एकनाथजी का जीवन।
सत्र ३
सेवा की संकल्पना – आध्यात्मिक सेवा
आ. विकासजी दवे
* स्वामीजी ने हमेशा सेवा का ही आग्रह किया।
* सेवा भाव के लिए सम्पूर्ण सृष्टि से एकाकार होना आवश्यक है।
उदा . ठाकुरजी – गाय को मार रहे है परन्तु दर्द ठाकुरजी को हो रहा है ....(सिया राम मय सब जग जानी)
* सेवा की उत्पत्ति यह आत्मीयता से निर्माण होती है | सेवा में बाधाये आती है परन्तु आत्मीयता होने से वह दूर होती है।
* पुण्य केवल सेवा से ही प्राप्त होता है।
* वास्तव में सेवा वृत्ति सभी में होती है।
* अपने आप को जलाने वाले ही प्रकाश दे सकते है।
* सेवा करते समय अहंकार का भाव नही आने देना।
* सेवा याने सभी के प्रति ह्रदय में अनुभूति।
* सेवा का आग्रह स्वयं से करे।
* सेवा का भाव आचरण से स्पष्ट होना चाहिए।
* जिनका जीवन सेवा से परिपूर्ण है उनके जीवन को पढ़े।
* अन्यों की वेदना ही मेरी वेदना बने यही सेवा की संकल्पना है।
* सेवा करते समय हमेशा हमारी गर्दन निचे होनी चाहिए।
सत्र ४
सेवा कार्य के परिणाम – जो दिखते नही समजने पढ़ते है
आ. नंदनजी जोशी
* मोक्ष की व्याख्या सेवा से प्रारंभ होता है।
* निस्वार्थ सेवा का परिणाम – शिलास्मार्क तीर्थ क्षेत्र।
* निस्वार्थ से याने अपने ही पास के लोगों की सेवा करना।
* स्वार्थ पूर्ण सेवा यह क्षणिक होती है।