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शिबिरोकी शृंखला में राष्ट्रीय कार्यकर्ता  प्रक्षिशण एक महत्वपूर्ण आयाम है। इसमें स्थानिक, प्रांतिस्तरीय प्रक्षिशण के पश्र्चात कार्यकर्ता आतें हैं। कार्यकर्याओं को क्षमता, संकल्पना और दृष्ट्रीकोन की स्पष्टता होती हैं। (concept, skills and attitude). १३ वाँ राष्ट्र स्तरीय कार्यकर्ता प्रशिक्षण ४ जून को विवेकानन्द पुरम के पावन परिसर में योग शिक्षा शिबिर के साथ प्रारंभ था। शिबिर की शरुआत परिचय सत्र से हुयी।

९ राज्यों से ३९ कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। २० शिक्षार्थी कार्यकर्ता व्यवस्था में थें।

    शिबिर औपचारीक शरुआत मंडपम् में हुई। मा. बालकृष्णन् जी ने अपने मार्गदर्शन में शिबिर के माघ्यम से क्रेन्द्र एवं अपने ध्येय को अच्छी तरह समझने का आह्वान किया।

    शिबिर की दिनचर्या ४-३० बजे से रात १० बजे तक होती थी। सुबह उठने के बाद प्रातःस्मरण में ईश्वरीय शक्ति को प्रार्थना कर योग वर्ग का अभ्यास होता था। सूचनाओं के महत्वपुर्ण बिन्दु तथा चर्चा कैसे लेते है ईसका विशेषकर अभ्यास हुआ। ७ दिन पश्र्चात कार्यकर्ताओं ने स्वयं अभ्यास कराना आरम्भ किया।

    शिबिर अधिक सुचारु रुप से चलने हेतु - ३ गण बनाये गये - २ भाईयों के , १ बहनों का। क्रेन्द्र का कार्य समझने हेतु प्रतिदिन २ बौद्धिक सत्र, एक सुबह १० बजे एवं ऐक ३:२० बजें जाता था। कुल २९ सत्र लिए गये जिसमें ८ विषय संगठनात्मक कार्य को स्पष्ट किया तथा २१ अन्य सत्रों में राष्ट्र, केन्द्र एवं कार्यकर्ता के संबंघित संकल्पनाओं को विषद किया।

    स्वाध्याय वर्ग कैसे लिया जाय? इस की संकल्पना को स्पष्ट करते हुए -ध्येय मार्ग- पुस्तक का अध्ययन किया। पढकर समझना, गण में चिन्तन कर प्रस्तुत करना, किसी व्यक्ति का प्रस्तुतिकरण, एतिहासिक स्थल का अध्ययन, संकल्पना को समझने हेतु संवाद, प्रश्र्नोत्तर के माध्यम से स्पष्टता एवं पढकर दुसरों को समझाना आदि प्रकार से अभ्यास करते हुए -ध्येय मार्ग- इस पुस्तक का भी अध्ययन हुआ।

    कार्यकर्ता को दृढ बनाने हेतु दोपहर २ से २-३० तक प्रार्थना का  अभ्यास होता था। व्यावहारीक संकल्पनाओं को स्पष्ट करने हेतु - अभ्यास सत्र – भी आयोजित किया गया। जिसमें कार्यरचना, बैठक, उत्सव, विजय हि विजय, परिपोषक आदि विषय लिये गये।

    आज्ञा अभ्यास, संस्कार वर्ग का नित्य अभ्यास होता था। सुबह कर्मयोग श्लोक संग्रह एवं प्रार्थनाओं का अर्थ बताया जाता था। प्रेरणा से पुनरुत्थान में प्ररणादायी अनुभव तथा समर्थ रामदास की जीवनी बतायी गई।

    शिबिरार्थी ने ३ गणों में भोजन व्यवस्था, फलक लेखन, श्रमसंस्कार दायीत्वों को निपुणता से निभाया।

    नित्य दिनचर्या से समय निकालकर सभी ने विवेकानन्द शिलास्मारक के दर्शन, तथा संर्पक कौशल्य को व्यवहारीकता समझाने हेतु कोटारम ग्राम ग्रामसंर्पक के लिये गये। मिलकर ५ मंदिरो को तथा स्थानिक लोंगो के साथ विचारों का आदान-प्रदान किया। यह एक अविस्मरणीय अनुभव था।

    शिबिर का आहुति सत्र माननिय भानुदासजीने यज्ञ की संकल्पना को समझते हुए उन्होंने बताया की विजय श्री की ओर चलने वाले हम कार्यकर्ता हंमेशां इस दृष्टी को ध्यान रखते हुए खुद को सर्मपित करें।
        
                            ----    वंदेमातरम् ----

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