स्वदेश, स्वधर्म, स्वाभिमान तथा स्वावलम्बन इन चार सूत्रों पर आधारित समाज व्यवस्था को सर्वोपरि मानने वाले स्वामी विवेकानन्द विश्व के आदर्शों में महानतम थे । स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि हमारा राष्ट्र देवता है और धर्म ही इसका प्राण है ।
इसलिए धर्म को लेकर विवाद नहीं होना चाहिए क्योंकि धर्म का मूल एकात्मता और सर्वसमावेशक होने के कारण धर्माधारित समाज व्यवस्था ही श्रेष्ठ है । इसलिए स्वामी विवेकानन्द के विश्वबंधुत्व की संकल्पना को सही ढंग से समझना आज विश्व के लिए अति आवश्यक है । इस बात का प्रतिपादन करते हुए दत्ता मेघे इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस के उप-कुलपति डॉ. श्री वेदप्रकाश मिश्रा ने स्वामीजी के संदेशों में निहित व्यापकता को विविध उदाहरणों के माध्यम से समझाया । वे विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी की नागपुर शाखा के माध्यम से आयोजित विश्वबंधुत्व समारोह के अंतर्गत आयोजित व्याख्यान में बोल रहे थे ।
डॉ. मिश्रा ने धर्म की व्यापकता को समझाने के लिए रामचरितमानस के अनेक चौपाई का आधार लिया । ‘विप्र धेनु सूर संत हित, लिन्ह प्रभु अवतार ।' तथा ‘हरि व्यापक सर्वत्र समाना, प्रेम ते प्रगट होई मैं जाना ।' के माध्यम से ईश्वरीय अवतार तथा उसके जीवन प्रयोजन का महत्व बताया । उन्होंने कहा कि स्वामीजी ने धर्म के मर्म को समझाने के लिए वैदिक शब्दावली को आधुनिक रूप दिया और अपने ज्ञान, तप और आचरण से संसार को बता दिया कि धर्म आधारित समाज व्यवस्था ही विश्व का कल्याण कर सकता है । धर्म संकुचितता, अंधविश्वास तथा अहंकार का द्योतक नहीं है वरन् धर्म विस्तार, व्यापकता, श्रद्धा और सर्वसमावेशक एकात्मता का परिचायक है । ‘जितने मत उतने पथ' इसलिए केवल अपने ही सम्प्रदाय को श्रेष्ठ मानकर दूसरों की निंदा करना धर्म नहीं है । मतभिन्नता होने के बावजूद मतऐक्यता होना वर्तमान के लिए आवश्यक है । डॉ. मिश्रा ने बताया कि विपरीत परिस्थितियों में स्वामी विवेकानन्द ने भारत और हिन्दू धर्म के तत्वों को अपने तपस्वी जीवन तथा ओजस्वी वाणी में जागतिक श्रेष्ठता प्रदान की । इसलिए स्वामी विवेकानन्द दिग्विजयी संन्यासी कहलाये । स्वामी विवेकानन्द ने ही अध्यात्म और विज्ञान के समन्वय का सूत्रपात किया था।
इसके पूर्व समारोह के मुख्य अतिथि स्पेसवूड फर्निचर्स प्रा. लि. नागपुर के प्रबंध संचालक श्री विवेक देशपांडे ने स्वामी विवेकानन्द तथा टाटा उद्योग के संस्थापक जमशेदजी टाटा से संबंधित प्रसंग सुनाया । उन्होंने बताया कि जमशेदजी टाटा को भारत में शिक्षा, अभियांत्रिकी, उद्योग तथा अनुसंधान संस्थानों के निर्माण की प्रेरणा स्वामी विवेकानन्द ने ही दी थी । कार्यक्रम के अध्यक्ष कॉन्फीडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स, नई दिल्ली के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री बी.सी. भरतिया ने अपने अध्यक्षीय भाषण में आगामी वर्ष में स्वामी विवेकानन्दजी की १५०वीं जयन्ती के प्रासंगिकता पर जोर देते हुए कहा कि हमारे देश के विद्यालयीनशिक्षा प्रणाली में स्वामी विवेकानन्द के संदेशों को छात्रों तक पहुँचाने की योजना होनी चाहिए । उन्होंने शिक्षा संस्थानों के प्रबंधकों, शिक्षकों और अभिभावकों से अपील की कि आगामी वर्ष में स्वामीजी के संदेशों को घर-घर पहुँचाकर ‘विवेकानन्दमयम' वातावरण बनाएँ । विवेकानन्द केन्द्र के विदर्भ विभाग प्रमुख श्री आनंद बगडिया तथा स्वामी विवेकानन्द सार्ध शती समारोह, नागपुर महानगर के संयोजक श्री सोमदत्त करंजेकर समारोह के दौरान मंचासीन थे ।
कार्यक्रम की शुरूआत दीपप्रज्जवलन से हुई । प्रारंभ में कु. वेदवती खेर तथा दीप्ति पिकले ने ‘सदा विवेकानन्दमयम' नामक संस्कृत गीत प्रस्तुत किया । अतिथियों के स्वागत के पश्चात् ‘ब्रेल लिपि' में प्रकाशित ‘कथा विवेकानंदांच्या' नामक पुस्तक का विमोचन मंचासिन अतिथियों के करकमलों द्वारा किया गया ।
सामाजिक क्षेत्र में उत्कृष्ठ सेवाकार्य के लिए सिकलसेल सोसायटी ऑफ इंडिया, नागपुर के श्री सम्पतराव रामटेके तथा जीवन आश्रम वृद्धाश्रम संस्था, नागपुर के श्री विकासजी शेंडे का इस अवसर पर स्वामीजी की प्रतिमा एवं साहित्य प्रदानकर उन्हें सेवाव्रती सम्मान से सम्मानित किया गया । साथ ही विवेकानन्द केन्द्र में कार्यरत १२वीं तथा १०वीं के गुणवन्त छात्र-छात्राओं को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया, जिनमें सौमित्र दाभोलकर (१२वीं), ऋषभ अग्रवाल (१२वीं), कु. प्रियंका शिरखेडकर (१०वीं) तथा ओंकार लपालकर (१०वीं) शामिल थे ।
कार्यक्रम की प्रस्तावना श्रीमती अर्चना लपालकर तथा श्रीमती गितांजली केलकर ने संचालन किया । श्री आनंद बगडिया ने आभार व्यक्त किया तथा सुश्री पल्लवी गाडगील के वन्देमातरम् से कार्यक्रम का समापन हुआ ।