Skip to main content

ग्वालियर। यदि हम अच्छा समाज चाहते तो हमें कुछ समय निःश्वार्थ से समाज निर्माण कार्यो में देना होगा। भले ही हमारा स्वाभाव अलग हो किन्तु ईश्वरीय कार्य करने के लिए अपने स्वाभाव में परिवर्तन करना ही होगा। जिस प्रकार विवेकानन्द की अनन्य भक्त भगिनि निवेदिता ने अपने व्यक्तित्व में परिवर्तन कर भारत भक्ति की अनूठी मिसाल पेश की। हम जो भी समय समाज कार्य में दें पूरी श्रद्धाभाव से दें। हमारे भीतर यह भाव रहे कि में काफी कम समय दे पा रहा हूं, ऐसा लज्जाभाव भी रहे। ऐसा ही भाव रखकर भगिनी निवेदिता ने भारत को अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया। वे केवल 13 साल भारत रही जिनमें से यदि 3 साल का समय उनका विदेषों में प्रवास का निकाल दे तो केवल नौ या दस वर्ष भारत में रहीं। वे सदैव सोचती थी कि मैं अपने जीवन का ज्यादा से ज्यादा भाग भारत की सेवा को समर्पित करूं। हम भी समाज कार्य के लिए अपना ज्यादा से ज्यादा समय दें और यदि आवश्यक हो तो अपने व्यवहार और आचरण में पूर्ण बदलाव कर आगे बढे तभी हम समर्पिता भारत की निवेदिता की भांति समाज कार्य कर पाएंगे।

यह बात विवेकानन्द केन्द्र की राष्टीय उपाध्यक्ष पदमश्री सुश्री निवेदिता भिडे ने विवेकानन्द केन्द्र की ग्वालियर शाखा द्वारा माधव महाविद्यालय, विवेकानन्द मार्ग पर मंगलवार कीष्षाम आयोजित विमर्श कार्यक्रम में बतौर मुख्यवक्ता कही। कार्यक्रम के मुख्यअतिथि महापौर विवेक नारायण षेजवलकर ने इस अवसर पर कहा कि भगिनी निवेदिता स्वामी विवेकानन्द की प्रेरणा से भारत आईं और सेवा के क्षेत्र में एक महान योगदान दिया। हमारी संस्कृति की महानता से स्वामी विवेकानन्द ने भगिनी निवेदिता को परिचित कराया और उसके बाद वे भारत माता की अनन्य भक्त होकर पूरी तरह से समर्पित हो गईं। 
कार्यक्रम में अतिथि परिचय नगर संचालक डॉ. अक्षय निगम ने दिया तथा अतिथियों का अभिनंदन शाल श्रीफल से डॉ. दिवाकर विद्यालंकार व मुरारी लाल माहेष्वरी ने किया। कार्यक्रम में गीत सेवा है यज्ञकुण्ड, समिधा सम हम जलें... केन्द्र के शिक्षार्थी कार्यकर्ता सुरेश लामा ने प्रस्तुत किया। वहीं निवेदिता वाणी श्रीमती महिमा तारे ने प्रस्तुत की। कार्यक्रम का संचालन व केन्द्र परिचय विवेकानन्द केन्द्र के विभाग सह संचालक नितिन मांगलिक ने दिया तथा आभार और आव्हान विभाग प्रमुख शशिदत्त गगरानी ने किया। 

स्वामी विवेकानन्द की मानसपुत्री भगिनी निवेदिता की सार्धषती समारोह के समापन अवसर पर ‘समर्पिताः भारत की निवेदिता‘ विषय पर आयोजित विमर्ष को संबोधित करते हुए आगे सुश्री निवेदिता भिडे ने कहा कि भगिनी निवेदिता आयरिष मूल की एक स्वाभिमानी युवती थीं जो सत्य को जानने के लिए सदैव जिज्ञासु रहीं वे जब उनके पिता के साथ चर्च जातीं तो सोचती थी कि उनका जन्म किसलिए हुआ है। वे सदा सत्य को जानने के लिए प्रयासरत रहती थीं। उन्होने एक विद्यालय शरू किया और उसमें भी अनेक नवाचार किया करती थीं। एक बार उनकी एक मित्र ने उन्हे भारत के एक युवा सन्यासी को सुनने का आव्हान किया और उन्हे अपने घर पर बुलाया किन्तु वे विवेकानन्द की बातों से सहमत तो थी पर बोली कि उनके व्याख्यान में कुछ नया नहीं था। फिर भी आगे स्वामी विवेकानन्द के भाषणों को सुनने जाने लगीं, और कुछ समय बाद उनके बीच पत्राचार भी शरू हुआ। तब एक बार एक सभा में स्वामी विवेकानन्द ने उनसे कहा कि भारत की महिलाओं के लिए शिक्षा के क्षेत्र में कार्य की बहुत आवष्यकता है। यदि वहां कोई नारी शिक्षा पर कार्य करे तो बेहतर होगा।  

मार्गरेट ने स्वामी विवेकानन्द ने पूछा कि वे भारत आकर सेवा कार्य कर सकती है। तो कुछ समय बाद स्वामी विवेकानन्द ने उन्हे भारत आने का आमंत्रण दिया और जब वे भारत आईं तो स्वामी विवेकानन्द उनकी अगवानी करने स्वयं पहुंचे। उन्हे मां सारदा से मिलवाया जहां दोनों के बीच हद्य की भाषा से संवाद हुआ। स्वामी विवेकानन्द ने एक सभा का आयोजन कर मार्गरेट का परिचय सभी से कराया और बाद में एक दीक्षा समारोह आयोजित कर उन्हे ‘‘भगिनी निवेदिता‘‘ नाम दिया। 
भगिनी निवेदिता ने भी स्वयं को इस मातृभूमि को अर्पित कर दिया वे सदैव ज्यादा से ज्यादा भारतीय संस्कृति को जानने के लिए उत्सुक रहीं और अपने अभिमान को गलाने के लिए सेवा कार्य और ध्यान का अभ्यास किया। निवेदिता ने ज्यादा से ज्यादा समय अध्ययन और बहनो की शिक्षा पर दिया। उन्होने विद्यालय षुरू किया और जहां बहनों की षिक्षा पर जोर दिया। प्राकृतिक आपदाओं के समय सेवाकार्य हेतु सदैव स्वयं को प्रस्तुत किया। उनके प्रत्येक कार्य में राष्ट्र भाव की प्राधान्यता रहती थीं। उन्होने सदैव कहा कि समाज में व्याप्त विसंगतियों को हम प्रेम और सेवा से ही दूर कर सकते हैं। 

भगिनी निवेदिता के कार्य और व्यक्तित्व से तत्कालीन साहित्यकार, कलामनीषी, क्रांतिकारी और समाजेवी सभी खासे प्रभावित थे। उनका व्यक्तित्व और उनका कार्य आज भी हमें एक श्रेष्ठ भारत के निर्माण के लिए प्रेरित करता है। आज हम संकल्प लें कि हम समाज के लिए ज्यादा से ज्यादा समर्पित भाव के साथ कार्य करें तभी हम अपना जीवन सार्थक कर पाएंगे। 

Get involved

 

Be a Patron and support dedicated workers for
their YogaKshema.

Camps

Yoga Shiksha Shibir
Spiritual Retreat
Yoga Certificate Course

Join as a Doctor

Join in Nation Building
by becoming Doctor
@ Kendra Hospitals.

Opportunities for the public to cooperate with organizations in carrying out various types of work