बिलासपुर ;दिनांक १२/०७/१५- विवेकानन्द केंद्र कन्याकुमारी, बिलासपुर इकाई के तत्वाधान में आज पं देवकीनंदन दीक्षित सभागार में एक विमर्श का आयोजन किया गया, जिसका विषय मात्रिशक्ति था। जिसमे विवेकानन्द केंद्र के अखिल भारतीय उपाध्यक्ष सुश्री निवेदिता भिड़े मुख्य वक्ता के तौर पर उपस्थित थी। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ सरोज कश्यप ,पूर्व प्राचार्या शा. कन्या. महा. वि. बिलासपुर ने किया, विशिष्ट अतिथी के रूप में पूर्व महापौर श्रीमती वाणीराव जी थी।
कार्यक्रम का प्रारंभ अतिथियों के द्वारा दीप प्रज्वलन एवम भारत माता के चित्र पर पुष्पार्पण से हुआ। इस अवसर पर विवेकानन्द केंद्र कन्याकुमारी के संस्थापक मा. एकनाथ जी रानडे के ऊपर एक डॉकुमेंट्री फिल्म दिखाई गयी। विशिष्ट अतिथी पूर्व महापौर श्रीमती वाणीराव जी ने अपने उदबोधन में विवेकानन्द को याद करते हुए कहा की स्त्री का जीवन केवल एक व्यक्ति के रूप में नहीं होती बल्कि वो एक माँ, एक बहन, एक बेटी एवम एक पत्नी के रूप पुरे समाज की एक विशिष्ट शक्ति के रूप में स्थापित होती है जो समाज में बदलाव की लहर ला सकती है। स्त्री केवल एक स्त्री नहीं होती बल्कि समाज की एक महत्वपूर्ण धुरी होती है, जिसके बिना संसार की कल्पना अधूरी है और जो समाज को चलाती है। कार्यक्रम की अध्यक्ष डॉ सरोज कश्यप ने स्त्री की हक एवं सम्मान की लड़ाई में पुरुष वर्ग की सहभागिता एवं सहयोग पर प्रकाश डाला ,उन्होंने स्त्री और पुरुष समाज के बीच बने एक असमानता पर जोर देकर कहा की ये असमानता केवल न्याय व्यवस्था से मिटने वाला नहीं है इसके लिए समाज को बदलना होगा।
मुख्य वक्ता सुश्री निवेदिता भिड़े, अखिल भारतीय उपाध्यक्ष विवेकानन्द केंद्र कन्याकुमारी, ने स्त्री शक्ति का भाविपथ पर बोलते हुए कहा की भारतीय स्त्रियाँ सदा से पूजनीय रही है और भारतीय समाज में स्त्रीयों को सदैव सम्मान के साथ देखा जाता है, लेकिन पथभ्रष्ट शिक्षा और आधुनिकता के कारण हम आज वह सम्मान नारी को नहीं दे पाते जिसकी अपेक्षा होनी चाहिए। भारत सदा से ही नारी को शक्ति के रूप में पूजते आया है जो आज भी भारतीय समाज में प्रासंगिक है। उन्होंने ने कहा कि स्त्री सशक्तिकरण के लिए पुरुषो की मानसिकता को बदलने की ज्यादा आवश्यकता है। यदि नारी को सशक्त बनाना है तो पुरुषो की सहभागिता अत्यंत आवश्यक है।
निवेदिता दीदी ने उदाहरण देते हुए कहा की जब हम स्त्रीयों के अच्छे स्वास्थ्य ,अच्छी शिक्षा के बारे में बाते तो करते है लेकिन जब वही स्त्री जब पुरे परिवार को खाना खिलाने के बाद जब भुखी पेट सोती है तो हम कुछ नहीं सोचते है। हम जानते है की शिशु का ७५% विकाश ६ वर्ष की आयु तक हो जाती है जो समय वह ज्यादातर अपने माँ के आस-पास ही बिताता है अत: माँ द्वारा दी जाने वाली शिक्षा का उसके मन-मस्तिस्क पर गहरा प्रभाव पड़ता है, शिक्षित स्त्री यह कर्त्तव्य भलीभांति निष्पादित करती है जो शिक्षित समाज के निर्माण में निर्णायक भूमिका निभाती है। एक सबल नारी से सबल परिवार, सक्षम समाज और उन्नत राष्ट्र का सपना पूरा होता है, स्त्री सशक्तिकरण का अर्थ स्त्री की स्वछन्दता नहीं है , बल्कि उसके देश एवं समाज के प्रति ज्यादा जिम्मेदार होने से है तभी हम सच्चे अर्थो में स्त्री सशक्तिकरण को समझ पाएंगे।