स्वामी विवेकानन्द के साहित्य और विचारों को जन जन तक, प्रदेश के गांव-गांव तक पहुंचाने के लिए संस्कृति-रेणु भारतीय संस्कृति तथा साहित्य चल प्रदर्शनी को एक पुस्तकालय का रूप भी दिया गया है। जिसमें स्वामी विवेकानन्द के साहित्य को भली भांति प्रदर्शित किया गया हैं। १८ फ़रवरी, शनिवार को गोविंददेवजी मंदिर के सत्संग भवन में विवेकानंद केन्द्र राजस्थान की ओर से आयोजित ’’संस्कृति-रेणु’’ वाहन के लोकार्पण समारोह को संबोधित करते हुए विवेकानंद केन्द्र के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मा. बालकृष्णन ने कहा कि केन्द्र का उद्देष्य भारतीयों को संगठित कर उनमें आत्मिक शक्ति पैदा करना है। केन्द्र शिक्षा, ग्रामविकास, स्वास्थ्य, योग एवं सूर्य नमस्कार के माध्यम से देश की युवापीढ़ी को जागृत करने का काम कर रहा है।
उन्होंने कहा कि अगले वर्ष (2013-2014) को स्वामी विवेकानन्द की सार्ध षती समारोह के रूप में मनाया जाएगा। इसको ध्यान में रखते हुए हमने भारत को पाँच आयामों - युवक, सवंर्धिनी (महिला), प्रबुद्ध भारत (बुद्धिशक्ति), ग्रामायण और वनवासी को विषेष रूप से अपने सामने रखा है। इन क्षेत्रों में विवेकानन्द का संदेश ले जाने के लिए पूरे साल कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। उन्होंने पूर्वांचल के हालात पर चिंता जताते हुए कहा कि आज भी वहाँ के कुछ राज्यों के लिए अपने को बहुत अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। इसलिए ऐसी जनजातियों के बीच जाकर उन्हें मुख्यधारा से जोड़कर उनमें देशभक्ति की भावना जगाई जाएगी।
दूरदर्शन केन्द्र जयपुर के निदेषक आर.पी.मीणा ने कहा कि स्वामीजी के संदेश किसी धर्म विशेष के लिए न होकर मानव मात्र के लिए हैं। विवेकानन्द का राजस्थान से विशेष लगाव था और वे खेतड़ी, किशनगढ़ और अजमेर आए थे। उनकी प्रेरणा से कई लोगों ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया। उन्होंने कहा कि दूरदर्शन केन्द्र जयपुर ने भी उनके जीवन पर आधारित चार डाक्यूमेंट्री फिल्में बनाई हैं। गोस्वामी अंजनकुमार (मन्दिर के महन्त) ने विवेकानन्द को युवाओं का प्रेरणा स़्त्रोत बताते हुए कहा कि आज जो युवा अपना मार्ग भटक गए हैं वे उनके बताए मार्ग पर चलें ताकि भारत की आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत को आगे ले जाया जा सके।
अअमेरिका से आई श्रीमती रेणु मल्होत्रा जिनके सौजन्य से यह चल प्रदर्शनी राजस्थान को प्राप्त हुई है, ने कहा कि विदेशों में लोग हिन्दू धर्म के बारे में जानना चाहते हैं। उन्होंने अपना अनुभव बताते हुए कहा कि एक बार चर्च में जब उन्हें हिन्दू धर्म के बारे में कुछ जानकारी देने के लिए कहा गया तो उन्होंने बताया कि हिन्दू धर्म तो बहुत आसान है ‘‘हम भी सुखी रहें आप भी सुखी रहो’’ यह प्रेरणा मुझे स्वामी विवेकानन्द की पुस्तकों से मिली। बंगाली मूल की श्रीमती मल्होत्रा बताती हैं कि 45 वर्ष पहले जब वे अमेरिका गई थीं तो उनकी माँ ने स्वामी विवेकानन्द की एक पुस्तक उन्हें दी थी तब से ही विवेकानन्द के विचारों की ओर उनका रुझान बढ़ता गया।
इस अवसर पर राजस्थान विवेकानंद केन्द्र के संचालक डाँ. बद्रीप्रसाद पंचोली, श्री सुदर्शन कुमार मल्होत्रा, लोग उपस्थित थे।